कलाकारों ने दशहरा मनाने की अपनी खुशनुमा यादों के बारे में बताया!

दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और इसे लोग दिल से मनाते हैं। एण्डटीवी के कलाकारों के लिए यह त्योहार न सिर्फ उत्साह लाता है, बल्कि पुरानी यादों को भी ताजा कर देता है। वे अपने खुशहाल पलों और महत्वपूर्ण परंपराओं को याद करते हुए त्योहार की खुशी मनाते हैं। नेहा जोशी (कृष्णा देवी वाजपेयी, ‘अटल’), योगेश त्रिपाठी (दरोगा हप्पू सिंह, ‘हप्पू की उलटन पलटन’) और आसिफ शेख (विभूति नारायण मिश्रा, ‘भाबीजी घर पर हैं’) अपने रोमांच, रिवाजों और यादों के बारे में बात कर रहे हैं। नेहा जोशी, ऊर्फ कृष्णा देवी वाजपेयी ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा, ‘‘हमारा त्यौहार हमेशा अपने बुजुर्गों का आशीर्वाद लेने की परंपरा से शुरू होता है। यह रिवाज मुझे बचपन की यादों में ले जाता है। मैं गेंदे के ताजे फूलों की खुशनुमा सुगंध लेते हुए जागती थी, क्योंकि मेरी माँ उन फूलों को हमारे घर के दरवाजे के लिये एक खूबसूरत तोरण में लगाती थीं। इससे पता चल जाता था कि त्यौहार शुरू हो चुका है। मैं और मेरे भाई-बहन उत्सुकता से सजावट में मदद करते थे, क्योंकि हम जानते थे कि पूरे दिन मजा होने वाला है। दशहरा के लिये मेरी एक पसंदीदा परंपरा है आप्टा की पत्तियाँ बांटना, जो समृद्धि का प्रतीक होती हैं। बचपन में हम इधर-उधर भागते हुए अपने दोस्तों और पड़ोसियों को यह पत्तियाँ देते थे और उनके खुश रहने की कामना करते थे। अप्टा की पत्तियाँ बांटने का एहसास जादुई होता था, जैसे कि हम पूरे साल के लिये शुभकामनाओं के साथ सोना बांट रहे हों। आज भी यह सुंदर परंपरा मुझे खुश कर देती है। रसोईघर पूरन पोली, श्रीखण्ड पूरी और पूरी भाजी जैसे पकवानों की लुभावनी सुगंध से भर जाता था और हर चीज बड़े ही प्यार से बनाई जाती थी। मुझे अच्छे से याद है कि अपने परिवार के साथ बैठकर मैं इन पकवानों को खाने की अपनी बारी आने का इंतजार किया करती थी। इनमें पूरन पोली सबसे खास थी, जो मुझे बेहद पसंद है।’’

योगेश त्रिपाठी, ऊर्फ दरोगा हप्पू सिंह ने बताया, ‘‘उत्तर प्रदेश में पलने-बढ़ने के कारण दशहरा मेरे लिये साल के मुख्य आकर्षणों में से एक होता था। मैं और मेरे दोस्त उत्सुकता से इस दिन का इंतजार किया करते थे, जब रावण के बड़े-बड़े पुतलों को जलाकर और पटाखे फोड़कर त्यौहार मनाया जाता था। सबसे रोमांचक पहलूओं में से एक था शहर में राम लीला के भव्य आयोजन देखना। पिताजी हमें स्थानीय मैदान पर ले जाते थे, जहाँ कलाकार रामायण की महान कहानी पर प्रस्तुति देते थे। उनके परिधान चटकीले और संवाद नाटकीय होते थे। माहौल में गजब की ऊर्जा होती थी। मैं अब भी याद कर सकता हूँ कि भगवान राम किस तरह रावण के विशाल पुतले पर लक्ष्य साधते थे और उनका तीर छूटते ही लोग रोमांच से भर जाते थे। और फिर जल्दी ही वह पुतला आग की लपटों में घिर जाता था। आग की घरघर आवाज, पटाखों की चकाचैंध और परिवार के साथ साझा की जाने वाली खुशी ने मेरे उन पलों को यादगार बनाया है। हमारे लिये यह सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं था, बल्कि हम उस भव्यता के अनुभव से रोमांचित हो उठते थे। रावण दहन की परंपरा का अब तक मेरे दिल में एक विशेश स्थान है।’’ आसिफ षेख, ऊर्फ विभूति नारायण मिश्रा ने कहा, ‘‘अपने परिवार के साथ रामलीला में जाने की याद मेरी सबसे प्यारी यादों में से एक है। मैं देखता ही रह जाता था कि वह प्रस्तुति किस तरह रामायण को जीवंत बना देेती थी और इस तरह दशहरा और उसके सदाबहार मूल्यों से मुझे प्यार हो गया। इस साल मुझे अपने को-स्टार रोहिताश्व गौड़ (मनमोहन तिवारी) के साथ दिल्ली की मशहूर रामलीला देखने का सौभाग्य मिला था। वह बेहद खास अनुभव था और भीड़ के जोश तथा कलाकारों की शानदार प्रस्तुतियों ने मुझे अपने बचपन की याद दिला दी। दिल्ली में दशहरा मनाने से, खासकर रोहिताश्व के साथ, बुराई पर अच्छाई की जीत को लेकर इस त्यौहार के संदेश से मेरा जुड़ाव और भी बढ़ गया।’’

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