वल्र्ड हेरिटेज डे ऐतिहासिक स्मारकों और स्थलों को समर्पित एक अंतर्राष्ट्रीय दिवस होता है। यह हर साल 18 अप्रैल को मनाया जाता है और इसके तहत संस्कृति तथा धरोहर को बढ़ावा दिया जाता है। इस दिन सांस्कृतिक धरोहर की विविधता के महत्व पर जागरूकता बढ़ाई जाती है, ताकि उसे भविष्य की पीढ़ियों के लिये संरक्षित किया जा सके। एण्डटीवी के कलाकार भारत के कुछ सबसे प्रसिद्ध धरोहर स्थलों पर घूमने के अपने अनुभव बता रहे हैं। इन कलाकारों में शामिल हैं आशुतोष कुलकर्णी (कृष्ण बिहारी वाजपेयी, ‘अटल’), योगेश त्रिपाठी (दरोगा हप्पू सिंह, ‘हप्पू की उलटन पलटन’) और विदिशा श्रीवास्तव (अनीता भाबी, ‘भाबीजी घर पर हैं’)। ‘अटल’ के कृष्ण बिहारी वाजपेयी, यानि आशुतोष कुलकर्णी ने बताया, ‘‘भारत की शान उसके समृद्ध सांस्कृतिक टेपेस्ट्री अथवा चित्रपट में दिखती है। इसकी झलक हमारे धरोहर स्थलों में मिलती है। मैंने देश में अनेकों यात्राएं की हैं और ऐसे स्थलों का दौरा किया है। मुझे यात्रा करने का शौक है और अपनी आँखों तथा यादों में ऐसी जगहों के भाव को संजोने की मुझे इच्छा होती है। हालांकि, अयोध्या का मेरा हालिया दौरा बेहद खास साबित हुआ, क्योंकि वहाँ मैंने सांस्कृतिक धरोहर की असीम सुंदरता देखी। अयोध्या की खूबियों में ऐतिहासिक हनुमान गढ़ी मंदिर शामिल है, जो शहर के समृद्ध अतीत का प्रमाण देता है। राम नवमी से पहले मेरी तीर्थयात्रा एक गहन आध्यात्मिक अनुभव देने वाली थी। हिन्दु पुराणों में उस मंदिर के महत्व का मुझे अहसास हुआ और आस-पास का इलाका भी काफी शांत है। एक पहाड़ी पर स्थित हनुमान गढ़ी भगवान हनुमान को समर्पित एक अभयारण्य जैसी है। वह भगवान राम के अनन्य भक्त हैं और यह जगह अयोध्या के पवित्र स्थानों में से एक है। मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ते वक्त संगीतमय घंटियाँ सुनाई देती हैं। अगरबत्तियों की सुगंध से पूरी पहाड़ी का आभामंडल पवित्र हो जाता है। मंदिर के भीतर गर्भगृह में मुझे बहुत शांति मिली और भगवान हनुमान की अलौकिक उपस्थिति का अहसास हुआ। वहाँ कई जगहों के तीर्थयात्री पहुँचते हैं, क्योंकि उन्हें भगवान हनुमान से सुख का आशीर्वाद चाहिये होता है। हनुमान जी का अटूट समर्पण तो करोड़ों लोगों को प्रेरित करता ही है। राम नवमी से पहले की मेरी अयोध्या यात्रा प्राचीन परंपराओं को गहराई से जानने के कारण मेरी यादों में बस गई है। उस पवित्र शहर में हर कदम पर मुझे धरोहर से अपने जुड़ाव गहरा एहसास हुआ। मुझे बीते युगों और विभिन्न संस्कृतियों की झलक मिली। ऐसे अनुभव मुझे अपनी धरोहर से जोड़ते हैं। मुझे पता चलता है कि इतिहास हमें किसी ऐसी चीज से जोड़ देता है, जो हमसे भी बढ़कर होती है।’’
‘हप्पू की उलटन पलटन’ के दरोगा हप्पू सिंह, ऊर्फ योगेश त्रिपाठी ने बताया, ‘‘भारत का आकर्षण उसके ऐतिहासिक स्थलों के खजाने से बढ़ता है। मुझे इतिहास को लेकर जुनून है। और इसलिये मैं ऐसे सफर पर जाने का कोई मौका नहीं छोड़ता हूँ, जो अतीत के चित्रपट से पर्दा हटाए और उन स्थलों को सांस्कृतिक धरोहर का दुर्ग बना दे। मैंने कई किले और महल देखे हैं, लेकिन अपनी हालिया यात्रा में मैंने ग्वालियर के भव्य किले को देखा। वह जगह अपने अतीत की कहानी के लिये प्रसिद्ध है, खासकर ‘‘मन मंदिर’’ और गुजरी महल पैलेस को लेकर। ग्वालियर का किला तोमर राजपूत शासक मान सिंह तोमर ने बनवाया था। यह किला भारत के प्राचीन इतिहास और वास्तुशिल्प में दक्षता का प्रमाण देता है। इसके चलते वह विशेष आधार पर यूनेस्को वल्र्ड हेरिटेज साइट भी है। किले की ऊँची-ऊँची दीवारें ध्यान खींचती हैं, जहाँ से नीचे देखने पर शहर की हलचल का विहंगम दृश्य मिलता है। किले के अजेय वातावरण में वास्तुशिल्प का खजाना छिपा है। बड़े-बड़े महल, खूबसूरत मंदिर और जलाशय अपने युग की सांस्कृतिक समृद्धि व्यक्त करते हैं। किले की भव्यता और कुषल कारीगरी ने मुझे निशब्द कर दिया और मैं वहाँ से बाहर ही नहीं आना चाहता था। इसके अलावा, वहाँ दोस्तों के साथ जाकर कभी न मिटने वाली यादें ली जा सकती हैं। देखने लायक स्नैपशाॅट्स में यादों को संजोया जा सकता है।’’ ‘भाबीजी घर पर हैं’ की अनीता भाबी, ऊर्फ विदिशा श्रीवास्तव ने बताया, ‘‘मैं वाराणसी में पली-बढ़ी हूँ और वहाँ धरोहर का खजाना है। हर गली और नुक्कड़ में भारत के वास्तुशिल्प की भव्यता और अटूट उत्साह की एक कहानी छिपी है। वाराणसी में कई भव्य मंदिर हैं, जहाँ का वास्तुशिल्प अनूठा है और आध्यात्मिक महत्व गहरा है। उनमें से एक है भगवान शिव का प्रसिद्ध श्री काशी विश्वनाथ मंदिर, जो बहुत विशेष है और वहाँ दुनियाभर से भक्त आते हैं। मैं हाल ही में महाशिवरात्रि पर वहाँ आशीर्वाद लेने गई थी और हमेशा की तरह मेरा अनुभव गहन तथा आध्यात्मिक उन्नति वाला रहा। मैं विश्वास के साथ कह सकती हूँ कि उस मंदिर और शहर की मेरे दिल में एक खास जगह है और इसके कई कारण हैं। वाराणसी की घुमावदार गलियाँ, हलचल से भरे बाजार, गंगा के प्रसिद्ध घाट और जीवंत नजारे एक लुभावना माहौल बनाते हैं। वहाँ जाने वालों को रिवाजों और समारोहों के समृद्ध चित्रपट का दर्शन होता है। वाराणसी संस्कृति का एक संगम स्थल बनकर उभरा है। उसे एक के बाद एक शासकों और सभ्यताओं ने आकार दिया है। मेरे लिये पवित्र गंगा नदी बचपन का एक अटूट हिस्सा थी। वहाँ रोजाना की जिन्दगी का एक शांत और आध्यात्मिक परिदृश्य मिलता था। चाहे घाटों से सूर्योदय देखना हो या शाम की आरती में जाना, मेरी परवरिश पर उस पवित्र नदी की एक अमिट छाप है। इससे प्रकृति और परंपरा के प्रति श्रद्धा जागती है। जब भी मैं अपने पवित्र शहर को लौटती हूँ, तब घाटों पर जाकर हर संभव तरीके से उनकी सुंदरता को अवश्य संजोती हूँ। मुझे कई यादें मिलती हैं और एक कालजयी नगरी से मेरा जुड़ाव गहरा होता जाता है।’’
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