परीकथायें हमारे बचपन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और इनसे हमें कई जानकारियां मिलती हैं। जादुई कहानियां हमारा मनोरंजन करती हैं, हमारी कल्पनाशीलता को बेहतर बनाती हैं और हमारी सीखने की क्षमताओं को बढ़ाती हैं। हर साल 26 फरवरी को नेशनल टेल अ फेयरी टेल डे मनाया जाता है जिसका उद्देश्य दुनिया भर में हर किसी को परीकथायें पढ़ने, कहने और सुनने के लिये प्रोत्साहित करना है। इस खास मौके पर,एण्डटीवी के कलाकाारों- शिव्या पठानिया (‘बाल शिव‘ की देवी पार्वती), अकांशा शर्मा (‘और भई क्या चल रहा है?‘ की सकीना मिर्जा), कामना पाठक (‘हप्पू की उलटन पलटन‘ की राजेश) और शुभांगी अत्रे (‘भाबीजी घर पर हैं‘ की अंगूरी भाबी) ने परियों से जुड़ी अपनी पसंदीदा कहानियों के बारे में बात की।
एण्डटीवी के बाल शिव की शिव्या पठानिया (देवी पार्वती) ने कहा, ‘‘परी कथायें इतनी जादुई और मनमोहक होती हैं कि आप बस उन्हे ंसुनते ही जाते हैं। मुझे यूनीकाॅन्र्स बहुत ज्यादा पसंद हैं और मेरे घर के आस-पास की हर चीज, खासकर मेरा बेडरूम यूनीकाॅन्र्स से सजा हुआ है। अधिकतर परी कथाओं में जानवर मेरे पसंदीदा किरदार होते हैं। उन्हें इंसानों की तरह बोलते देखना मनमोहक होता है और कभी-कभी तो वे आधे इंसान और आधे पशु के रूप में होते हैं, जिनके पास जादुई शक्तियां होती हैं। उनके सींगों में जख्मों एवं बीमारियों को ठीक करने और जहर के असर तक को खत्म करने की ताकत होती हैं। मेरी सबसे पसंदीदा परी कथा है ‘स्वान लेक‘, जिसमें एक बोलने वाला यूनीकाॅर्न ‘लिली‘ है। बचपन में मैं सोचती थी कि मैं इस कहानी की मुख्य किरदार और यूनिकाॅर्न लिली की बेस्ट फ्रेंड ओडिटे हूं (हंसती हैं)। आप बस नाम लेते जायें और मैं बोलती जाऊंगी और आज भी मुझे परियों की कहानियां उतनी ही ज्यादा पसंद हैं। मुझे यूनीकाॅन्र्स बहुत अच्छे लगते हैं और यहां तक की मेरी ज्यादातर एसेसरीज भी यूनीकाॅर्न थीम की हैं, फिर चाहे मेरा बैग हो, टी-शर्ट, की चेन्स, मग्स, बेडशीट्स, साॅफ्ट ट्वाॅयज और हेयर क्लिप्स। इसकी सूची लंबी-चैड़ी है।’’
एण्डटीवी के ‘और भई क्या चल रहा है?’ की अकांशा शर्मा (सकीना मिर्ज़ा) ने कहा, ‘‘जब मैं छोटी थी, तब हर दिन सोने से पहले परियों की एक कहानी सुना करती थी। वह कहानी मुझे मेरी माँ सुनाती थीं। और मेरी सदाबहार पसंदीदा परीकथा, जिसे मैं रोजाना सुनने की जिद करती थी, वह रपूनज़ेल की कहानी थी। मैं रपूनज़ेल के लंबे और मजबूत बालों से इतनी प्रभावित थी कि मैंने बहुत लंबे समय तक अपने बालों को ट्रिम तक नहीं होने दिया। उल्टा मैं अपनी दादी माँ से चम्पी करने के लिये कहती थी, ताकि मेरे बाल तेजी से बढ़ें। बाल धोने के बाद मैं घंटों आइने के सामने खड़ी होकर उनकी लंबाई देखती थी (खिलखिलाती हैं) और कल्पना करती थी कि मैं रपूनज़ेल बन रही हूँ। जब मैं बड़ी हुई, तब रपूनज़ेल के बालों ही नहीं, किरदार से भी प्रभावित हुई। मैंने उससे बहादुर और मजबूत बनना सीखा। परीकथाएं आपको एक जादुई दुनिया में ले जाती हैं, किरदारों के जरिये नैतिकता के असली सबक चित्रित करती हैं, बच्चों में गुणों और रचनात्मकता का विकास करती हैं। ईमानदारी से, इस उम्र में भी मुझे परीकथाएं देखने में मजा आता है।’’
एण्डटीवी के ‘हप्पू की उलटन पलटन’ की कामना पाठक ( राजेश ) ने कहा, ‘‘परीकथाओं के मामले में, पिनोचियो मेरी सबसे पसंदीदा कहानी है। मेरी पसंद आम परीकथाओं से बहुत अलग थी। पिनोचियो का किरदार तो दिलचस्प था ही, लेकिन उसने हमें ईमानदारी का महान सबक सिखाया। मैं बचपन में कभी झूठ नहीं बोलती थी, क्योंकि मुझे डर था कि हर झूठ के साथ मेरी नाक बढ़ जाएगी। मैंने वह कहानी अपने भाई को भी सुनाई थी और हम दोनों ही जितना संभव होता, झूठ बोलने से बचते थे। आज भी मुझे अपनी नाक छूकर देखने की आदत है कि वह बड़ी तो नहीं हुई (हंसती हैं)। कभी-कभी मुझे लगता है कि परीकथाओं से हममें जो मासूमियत आती है, वह पूरी जिन्दगी हमारे साथ रहती है। मुझे खुशी है कि ‘टेल अ फेयरी टेल डे’ जैसा भी एक दिन है, जो हमें अपने जीवन के सबसे अच्छे पलों में से कुछ को दोबारा जीने की याद दिलाता है और यह कि परीकथाएं कैसे हमारे बचपन का अटूट हिस्सा थीं।’’
एण्डटीवी के ‘भाबीजी घर पर हैं’ की शुभांगी अत्रे (अंगूरी भाबी) ने कहा, ‘‘परीकथाएं बचपन की अनमोल कहानियाँ होती हैं। यह कहानियाँ सुखद अंत के अलावा हमें कई गुणों और चीजों के बारे में सिखाती हैं। मेरी सदाबहार पसंदीदा परीकथा है सिंड्रेला और दिलचस्प बात यह है कि वह मेरी बेटी को भी बहुत पसंद है। हम माँ-बेटी जब भी साथ होती हैं, उस परीकथा के साथ समय बिताती हैं। जब मैं छोटी थी, तब एक नीली ड्रेस पहनती थी और ठीक राजकुमारी सिंड्रेला जैसी हरकतें करती थी। और हमेशा ग्लास स्लिपर्स के लिये इधर-उधर देखती थी, लेकिन दुर्भाग्य से, वह मुझे कभी नहीं मिले! (हंसती हैं)। लेकिन आजकल हर चीज उपलब्ध है और इसलिये मुझे सिंड्रेला के ग्लास स्लिपर्स की प्रतिकृति मिल गई और वह मैंने अपनी बेटी को तोहफे में दे दिये। उन्हें पहनना उसे पसंद है और मैं उसकी मुस्कुराहट में अपने बचपन को जीती हूँ। सिंड्रेला हम सभी को एक महत्वपूर्ण सबक सिखाती है कि जहाँ चाह है, वहाँ राह है। सिंड्रेला की सौतेली माँ और बहनों ने उसके साथ कितना बुरा व्यवहार किया, लेकिन उसने हमेशा खुश रहने का तरीका खोज निकाला और अंदर से असली राजकुमारी बनी रही।’’