निर्देशक: अनिल शर्मा
कलाकार: नाना पाटेकर, उत्कर्ष शर्मा, सिमरत कौर
रेटिंग:3.5/5
अनिल शर्मा की “वनवास” एक ऐसी कहानी है जो परिवार, रिश्तों, और मानव भावनाओं की जटिलताओं को उजागर करती है। यह फिल्म आधुनिक समाज में रिश्तों की बदलती प्राथमिकताओं पर आधारित है, जहां लोग खुद को परिवार से ऊपर रखकर सोचने लगे हैं।
फिल्म की कहानी बुजुर्ग पिता (नाना पाटेकर) के इर्द-गिर्द घूमती है, जिन्हें उनके बेटे और बहुएं अपनी ज़िंदगी का बोझ समझने लगते हैं। चालाकी से उन्हें घर से बेघर कर दिया जाता है। बुढ़ापे में अकेलापन, शारीरिक कमजोरी और कमजोर होती याददाश्त से जूझते हुए भी वह इस उम्मीद में जीते हैं कि एक दिन उनका परिवार उन्हें वापस अपनाएगा।
इस दौरान उनकी मुलाकात वीरू (उत्कर्ष शर्मा) से होती है, जो एक सरल और सच्चा युवक है। वीरू उनकी कहानी सुनकर उनकी मदद करने का फैसला करता है और परिवार के टूटे हुए धागों को फिर से जोड़ने की कोशिश करता है। कहानी में प्यार, तकरार, और मानवीय रिश्तों की गहराई को दर्शाते हुए यह फिल्म आगे बढ़ती है।
1. नाना पाटेकर (पिता के रूप में):
नाना पाटेकर ने अपने किरदार को पूरी तरह आत्मसात किया है। उनके अभिनय में वह गहराई और ईमानदारी है, जो दर्शकों को अंदर तक झकझोर देती है। उनके चेहरे के भाव और संवाद अदायगी हर सीन को जीवंत बनाते हैं। यह उनके करियर की सबसे बेहतरीन परफॉर्मेंस में से एक मानी जा सकती है।
2.उत्कर्ष शर्मा (वीरू के रूप में):
उत्कर्ष शर्मा ने अपनी सादगी भरी परफॉर्मेंस से ध्यान आकर्षित किया। उनका किरदार हर उस व्यक्ति की उम्मीद है, जो अपने परिवार के टूटते रिश्तों को जोड़ना चाहता है।
3.सिमरत कौर (बहू के रूप में):सिमरत कौर ने अपने किरदार में सटीकता दिखाई। उनकी भूमिका सीमित थी, लेकिन उन्होंने इसे पूरी ईमानदारी से निभाया।
अनिल शर्मा ने “वनवास” को पारिवारिक मूल्यों और रिश्तों की नाजुकता पर आधारित बनाया है। उनका निर्देशन फिल्म के इमोशनल पहलुओं को उभारता है। फिल्म में रिश्तों की पेचीदगियों और इंसानी भावनाओं को बड़े ही संवेदनशील तरीके से प्रस्तुत किया गया है।
कहानी कहीं-कहीं आपको अमिताभ बच्चन और हेमा मालिनी की “बागबान” की याद दिलाती है, लेकिन “वनवास” अपनी अलग पहचान बनाने में सफल रहती है।
फिल्म की सिनेमेटोग्राफी बहुत आकर्षक है। पारिवारिक माहौल और भावनात्मक पलों को कैमरा खूबसूरती से कैद करता है।
बैकग्राउंड म्यूजिक फिल्म के हर सीन को और प्रभावी बनाता है। खासकर इमोशनल दृश्यों में संगीत कहानी के साथ पूरी तरह मेल खाता है और दर्शकों के अनुभव को गहरा करता है।
फिल्म परिवार और रिश्तों की गहराई को छूती है। यह दिखाती है कि कैसे आधुनिक समय में रिश्तों में दूरियां बढ़ती जा रही हैं और इन्हें जोड़ने की कोशिशें कितनी मुश्किल हो सकती हैं।
फिल्म में ऐसा कोई भी दृश्य नहीं है जो परिवार के साथ देखने में असहजता पैदा करे। यह इसे हर उम्र के दर्शकों के लिए उपयुक्त बनाती है।
“वनवास” सिर्फ एक मनोरंजक फिल्म नहीं, बल्कि समाज के लिए एक सीख है। यह दर्शाती है कि परिवार का महत्व क्यों सबसे ऊपर होना चाहिए।
कहानी में नया कुछ खास नहीं है। इसे पहले भी अलग-अलग फिल्मों में देखा गया है। हालांकि, प्रस्तुति इसे खास बनाती है।
“वनवास” एक ऐसी फिल्म है जो पारिवारिक मूल्यों और रिश्तों की ताकत को बयां करती है। यह हमें सोचने पर मजबूर करती है कि हम अपने परिवार के साथ कैसा व्यवहार करते हैं और रिश्तों को सहेजने की कितनी कोशिश करते हैं।
हालांकि फिल्म में कुछ खामियां हैं, लेकिन इसके भावनात्मक पहलू और नाना पाटेकर का बेहतरीन प्रदर्शन इसे एक बार जरूर देखने लायक बनाते हैं। यह फिल्म खासकर उन लोगों के दिलों को छूएगी, जो परिवार को अपनी सबसे बड़ी ताकत मानते हैं।