एण्डटीवी ने दिसंबर 2019 में ‘एक महानायक डाॅ बी.आर. आम्बेडकर’ शो का प्रसारण शुरू किया था
इस शो में डाॅ बी.आर. आम्बेडकर के जीवन की कहानी को बयां किया गया है। इस कहानी ने न सिर्फ दर्शकों को प्रेरित किया बल्कि उन्हें बड़े ही उत्साह के साथ अपने साथ जोड़ा भी है। हाल ही में इस शो की कहानी में आये लीप के साथ एक नये अध्याय की शुरूआत हो चुकी है। लीप के बाद दर्शकों ने देखा कि युवा भीमराव आगे की पढ़ाई के लिये मुंबई आये हैं। इसके मौजूदा ट्रैक में, नरोत्तम जोशी (विक्रम द्विवेदी) पूर्वाग्रह से ग्रसित एक सहपाठी की भूमिका निभा रहे हैं। वह भीमराव और उनके परिवार के लिये मुश्किलें पैदा करने की लगातार कोशिश करता रहता है। काॅलेज में भीमराव के लिये परेशानी खड़ी करने के बाद वह बाबासाहेब और उनके परिवार को चाॅल से बाहर निकाल देने के लिये वहां के मालिक को भी मना लेता है। इस नई मुसीबत में फंसने के बाद, अब भीमराव इस परेशानी का हल किस तरह निकालेंगे?
कहानी के इस नये पड़ाव में शो में कई नये कलाकार नजर आयेंगे। इनमें युवा बाबासाहेब की भूमिका में अथर्वं, रमाबाई के किरदार में नारायणी महेश वरणे, लक्ष्मीबाई के रूप में शगुन सिंह और आनंद के किरदार में कुंवर विक्रम सोनी शामिल हैं। वहीं, जगन्नाथ निवानगुने, स्नेहा मंगल और फाल्गुनी दवे पहले की तरह ही रामजी मालोजी सकपाल, जीजाबाई एवं मीराबाई के अपने-अपने किरदारों को निभा रहे हैं। आईये मिलते हैं डाॅ बी. आर. आम्बेडकर के परिवार एवं नये किरदारों से।
अथर्व ऊर्फ युवा बाबासाहेब: बाबासाहेब के नाम से मशहूर, डाॅ बी.आर आम्बेडकर‘ के जीवन और उनके विचारों ने कई लोगों को प्रेरित किया है। उनकी प्रतिभायें और उपलब्धियां बेमिसाल है। डाॅ बी.आर. आम्बेडकर भारतीय इतिहास के उन सबसे महान नेताओं में से एक हैं,उन्होंने क्रांति की मशाल जलायी और उसकी आवाज बने। वह भारतीय संविधान के जनक और एक सर्वोच्च नेता भी थे, जिनकी धरोहर का कोई जोड़ नहीं है। उन्होंने समाज में जो योगदान दिया, उसकी कोई भी बराबरी नहीं कर सकता है। बचपन से ही बाबासाहेब हमेशा ही सही का साथ देने पर भरोसा करते थे। वे अन्याय और असमानता के खिलाफ डटकर खड़े रहे। उन्होंने हमेशा इस बात में विश्वास किया कि केवल शिक्षा ही सामाजिक सुधार लाने का काम कर सकती है। इस नये चरण में, समानता की उनकी यह लड़ाई जारी रहेगी।
नारायणी महेश वरणे ऊर्फ रमाबाई आम्बेडकरः रमाबाई भीमराव आम्बेडकर, बाबासाहेब की पत्नी हैं। वह अपनी बात खुलकर रखती हैं और ‘नया सवेरा, नया जीवन‘ की सोच में विश्वास रखती हैं। यह उनका दृढ़ विश्वास ही है, जिसके बलबूते पर वह सारी मुश्किलों से बाहर निकल आती हैं। सामाजिक अन्याय और अत्याचार के बीच भी वह डटी रहती हैं। भले ही रमाबाई ने कोई औपचारिक शिक्षा ना ली हो, लेकिन दबे-कुचले समुदाय के खिलाफ हो रहे अन्याय के विरूद्ध खड़े होने से पीछे नहीं हटतीं। रमाबाई आम्बेडकर उन महिलाओं में से हैं जिन्होंने दृढ़ता से डाॅ आम्बेडकर का साथ दिया, जो उनकी सबसे बड़ी ताकत थे। वह मानवता, सहनशीलता और करुणा की मूरत थीं।
कुंवर विक्रम सोनी ऊर्फ आनंद रावः आनंद, डाॅ भीमराव आम्बेडकर के बड़े भाई हैं जोकि उनकी देखभाल करते हैं। भीमराव को उनपर सबसे ज्यादा भरोसा है और वह अक्सर उनसे मार्गदर्शन, सहयोग और प्रोत्साहन लिया करते है। आनंद हमेशा ही भीमराव की सोच और विचारों का सम्मान करते हैं और एक तरह से उनकी परछाईं हैं।
शगुन सिंह ऊर्फ लक्ष्मीबाईः आनंद राव की पत्नी लक्ष्मीबाई एक खुशमिजाज लड़की है, जो रमाबाई को अपनी बहन की तरह मानती है। लेकिन वह बड़ी ही आसानी से दूसरों की बातों में आ जाती है। ऐसे में वह अक्सर अपने पति की महत्वाकांक्षाओं और प्राथमिकताओं को लेकर सवाल खड़े करती है।
जगन्नाथ निवानगुने ऊर्फ रामजी मालोजी सकपालः रामजी एक आर्मी आॅफिसर थे, जिन्हें सूबेदार का पद मिला था। वह अपनी सोच और उसूलों के पक्के थे। उन्होंने अपने बच्चों को सपने देखने और उन्हें पूरा करने की पूरी आजादी दी थी। बाबासाहेब के जीवन में उनका काफी प्रभाव था। मुश्किल वक्त में उन्होंने हमेशा बाबासाहेब का साथ दिया और उनकी देखभाल की। वह अपने बच्चों की भलाई के लिये प्रतिबद्ध थे। मुश्किल दौर में भी, रामजी अपने महत्वाकांक्षी और दूरदर्शी बेटे के साथ एक मजबूत स्तंभ की तरह खड़े रहे। वे अपने मूल संस्कारों और सीख पर हमेशा ही डटे रहे। अपने पिता के मार्गदर्शन से डाॅ बी.आर. आम्बेडकर ने दुनिया में अपनी जगह बनाने का एक ऐतिहासिक सफर शुरू किया। रामजी ने न सिर्फ हर कदम पर बाबासाहेब का साथ दिया, बल्कि पूरे परिवार की बुनियाद भी थे और उन्होंने सबको एक साथ जोड़कर रखा था।
स्नेहा मंगल ऊर्फ जीजाबाईः डाॅ भीमराव की मां की मौत के बाद, रामजी ने बच्चों की खातिर जीजाबाई से शादी कर ली और वह उनकी मां बनकर घर आयीं। उनके विचार युवा भीमराव से बिल्कुल अलग थे।
फाल्गुनी दवे ऊर्फ मीराबाईः मीराबाई, डाॅ भीमराव की बुआ थी। अपनी शारीरिक अक्षमता के बावजूद उन्होंने अपने भाई के बच्चों को बहुत प्यार और दुलार दिया और उनकी देखभाल की।