गर्मियों का मौसम हमें अक्सर अपने बचपन की गर्मी की छुट्टियों की याद दिलाता है और एक्टर्स भी इससे अछूते नहीं हैं! गर्मी की छुट्टियों को याद करते हुए, एण्डटीवी के कलाकार बीती बातें बता रहे हैं। यह कलाकार हैं प्रीती सहाय (कामिनी, ‘दूसरी माँ’), योगेश त्रिपाठी (दरोगा हप्पू सिंह, ‘हप्पू की उलटन पलटन’) और रोहिताश्व गौड़ (मनमोहन तिवारी, ‘भाबीजी घर पर हैं’)। प्रीती सहाय, यानि कामिनी ने कहा, ‘‘मेरे पास गर्मी की छुट्टियों की कुछ खूबसूरत यादें हैं। मैं लखनऊ से हूँ और ज्यादातर छुट्टियाँ अपने कज़िन्स के साथ आस-पड़ोस में ही बिताती थी। हम दिन का ज्यादातर वक्त साथ मिलकर बिताते थे, खेलते, हंसते और हर तरह की शरारत करते हुए; कोई हमें रोक नहीं सकता था, झुलसाने वाला सूरज भी नहीं। मुझे याद है कि दोपहर में हम कूल ड्रिंक्स बनाया करते थे, उनमें बर्फ डालते थे और अपने पैरेंट्स से छुपाकर रखते थे, क्योंकि वे हमें ज्यादा बर्फ खाने से रोका करते थे। इसलिये मैं जब भी गर्मी की छुट्टियों के बारे में सुनती हूँ, तुरंत उस बेहतरीन वक्त में लौट जाती हूँ, जो मैंने अपने कज़िन्स के साथ आउटडोर गेम्स खेलने में बिताया था, जैसे कि हाॅपस्काॅच, बैडमिंटन, लुका-छुपी, आदि। पूरा दिन साथ में बिताने के बाद भी हमें घर लौटना अच्छा नहीं लगता था और 10 मिनट ज्यादा खेलने के लिये हम बहाने बनाते थे। ओह! वे कितने अच्छे दिन थे!’’
योगेश त्रिपाठी, यानि दरोगा हप्पू सिंह ने कहा, ‘‘मेरी गर्मी की छुट्टियाँ मेरे होमटाउन, उत्तर प्रदेश में बीतती थीं। मेरे पैरेंट्स उम्मीद करते थे कि मैं पढ़ाई करते हुए छुट्टियाँ बिताऊं। मैं वक्त-वक्त पर ऐसा करता भी था, लेकिन परिवार में तंग करने वाला होने के नाते मैं दोस्तों के साथ समय बिताने के लिये बाहर भाग जाता था (हंसते हैं)। हमारे गांव में एक तालाब था, जहाँ मैं अपने कज़िन्स और दोस्तों के साथ तैरता था। हम पूरी दोपहर वहीं बिताते थे, जिसके बाद अपने आम के बगीचे में जाते थे। हम आम तोड़ा करते थे और मुकाबला करते थे कि कौन सबसे ज्यादा आम तोड़ता है (हंसते हैं)। उन आमों से मेरी माँ आम पना बनाया करती थीं, जोकि गर्मियों के लिये मेरा पसंदीदा पेय है। वह बेहतरीन दिन थे। वह हमारी जिन्दगी के सबसे खुशहाल दिन थे और वह दिन कभी लौटेंगे नहीं, पर हमारे चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहट लेकर आएंगे।’’ रोहिताश्व गौड़, यानि मनमोहन तिवारी ने कहा, ‘‘उन दिनों हमारे पास वक्त बर्बाद करने के लिये गैजेट्स नहीं होते थे। मनोरंजन के लिये हमारा एकमात्र साधन थे आउटडोर्स। गर्मियों के दौरान मैं परिवार के साथ पास के शहरों में जाता था, नये खेल खेलता था और दोस्तों के साथ आस-पास के बाजारों में घूमता था। मेरा पढ़ाई में कभी मन नहीं लगा और अपने पिता को देखते हुए मैं हमेशा से जानता था कि मुझे ड्रामा ही पसंद है और मैं उसी में आगे बढ़ूंगा। इसलिये मैं हमेशा गर्मी की छुट्टियों का इंतजार करता था, ताकि अपने पिता के साथ नाटक देखने जा सकूं। जब मैं घर पर होता था, तब मेरा मन कभी घर में नहीं रहा (हंसते हैं) और मैं दोस्तों के साथ बाहर खेलने चला जाता था।’’