किताबें जिंदगी को नये नज़रिये से देखना सिखाती है…कहते हैं एण्डटीवी के कलाकार, रोहिताश्व गौड़ और हिमानी शिवपुरी ‘विश्व पुस्तक दिवस पर

लोगों के ड्राइंग-रूम का अभिन्न हिस्सा होने से लेकर सफर का सबसे अच्छा साथी होने तक, किताबें आपका भरपूर साथ देती हैं

चाहे कागज पर छपे हुए रूप में हो या फिर उसका ई-वर्जन हो किताबें पढ़ने की खुशी की कोई सीमा नहीं होती है

किताबें पढ़ने के महत्व के बारे में बताते हुए एण्डटीवी के एक्टर्स ‘हप्पू की उलटन पलटन‘ से कटोरी अम्मा (हिमानी शिवपुरी)  और ‘भाबीजी घर पर हैं‘ से मनमोहन तिवारी (रोहिताश्व गौड़) ने ‘विश्व पुस्तक दिवस‘ के मौके पर किताबों के प्रति अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। उनके अनुसार, किताबें उनकी जिंदगी का अहम हिस्सा हैं और सही मायने में किताबें जादुई असर डालती हैं।

हिमानी शिवपुरी उर्फ कटोरी अम्मा कहती हैं, ‘‘किताबें मेरी जिंदगी का अहम हिस्सा हैं। मैंने बहुत ही कम उम्र से पढ़ना शुरू कर दिया था और तब से ही मैंने अपने पसंदीदा लेखकों और शैली की किताबों से एक छोटी-सी लाइब्रेरी बनाना शुरू कर दिया। किसी के लिये भी किताबों का नशा सबसे बढ़िया नशा होता है। छोटी उम्र से ही मैं किताबी कीड़ा रही हूं; मैं अपने पसंदीदा लेखकों की किताबों में इतनी डूबी रहती थी कि अपने टेक्स्टबुक्स पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाती थी। बेशक, परीक्षा के समय में मुझे काफी परेशानी होती थी। लेकिन हमें तो पढ़ने का चस्का था।‘‘ वह आगे कहती हैं, ‘‘सबसे पसंदीदा किताबों में गैब्रिएल ग्रेसिया मार्केज की ‘वन हन्ड्रेड ईयर्स आॅफ साॅलिट्यूड‘, पाउलो कोइल्को की ‘अल केमिस्ट‘, ‘आॅटोबायोग्राफी आॅफ ए योगी‘, खालिद मोहम्मद की ‘द काइट रनर‘, अमिष की ‘द शिवा ट्रायोलाॅजी‘ और झुम्पा लहरी तथा अरुंधति राॅय की कई सारी किताबें शामिल हैं। ‘विश्व पुस्तक दिवस‘ के मौके पर मैं आप सबसे कहना चाहूंगी कि अपने जीवन में किताबें पढ़ने की आदत को शामिल करें। पढ़ने से ना केवल आपके संवाद का कौशल बेहतर होता है, बल्कि किताबें जिंदगी को नये नजरिये से देखना सिखाती है।

‘‘ रोहिताश्व गौड़ उर्फ मनमोहन तिवारी कहते हैं, ‘‘अकेलेपन का साथी होता किताब। जब भी मुझे थोड़ी भी निराशा महसूस होती है, तो मुझे पता होता है कि मुझे किसकी शरण में जाना है। मैंने अपने घर में एक हैप्पी काॅर्नर बना रखा है, जहां मैं किताबों के साथ वक्त बिताता हूं और एक अलग ही दुनिया में खो जाता हूं। हाथ में एक कप चाय और किताब, बस वहीं सारी थकान गायब। मुझे अपनी पसंद के हिसाब से किताबों को व्यवस्थित करना भी अच्छा लगता है; इससे मुझे संतुष्टि मिलती है। मेरे लिये हमेशा ही इस सवाल का जवाब देना मुश्किल होता है जब कोई मुझसे कहता है कि अपनी पसंदीदा किताबें बताओ। मुझे नाटक की किताब और व्यंग्य पढ़ना पसंद है। मुझे किताबें पढ़ना अच्छा लगता है और शरद जोशी, प्रेमचंद, हरिचंद्र, विजय तेंदुलकर, मोहन राकेश के नाटक पढ़ना। मैंने उनकी किताबों को हजारों बार पढ़ा है। ‘विश्व पुस्तक दिवस‘ के मौके पर मैं हर उम्र के लोगों को कहना चाहूंगा कि तीन महीने में कम से कम एक किताब जरूर पढ़ें। इसके बाद धीरे-धीरे किताबों की संख्या बढ़ाते जायें जैसे-जैसे पढ़ने की गति तेज होती जाये और इसकी ललक बढ़े। किताबें पढ़ना सिर्फ एक शौक नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक तरीका हो सकता है।‘‘

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