विदिशा श्रीवास्तव वाराणसी में अपने 100 साल पुराने घर पहुंची और बचपन की यादें ताजा कीं

एण्डटीवी के कल्ट काॅमेडी शो ‘भाबीजी घर पर हैं‘ की अनीता भाबी, यानि विदिशा श्रीवास्तव हाल ही में अपने होमटाउन वाराणसी गई थीं और उन्होंने महाशिवरात्रि के मौके पर विश्व-प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर जाकर भगवान का आशीर्वाद लिया। उस उत्सव और शहर की चकाचैंध को देखने के अलावा, विदिशा की पुरानी यादें भी ताजा हो गईं, जब वह 100 साल पुराने अपने घर के गलियारों में घूमीं। अपनी खुशी बयां करते हुए विदिशा (अनीता भाबी) ने कहा, ‘‘काशी का यह सफर सबसे रोमांचक और यादगार रहा। मैं शुरूआत से ही बहुत उत्साहित थी, क्योंकि अपने होमटाउन जा रही थी। मैंने काशी विश्वनाथ का आशीर्वाद लिया, अपने दोस्तों और परिवार से मिली और अपने बचपन की बातों को याद किया। पुराने कबीर चौरा की गलियों में घूमते हुए मैं भावुक और रोमांचित थी। बीतते वक्त के साथ बहुत कुछ बदल गया है। कबीर चौरा में हमारा 100 साल पुराना एक घर है, जहाँ चार पीढ़ियाँ रह चुकी हैं। मुझे गर्व है कि मैं उस जगह से आती हूँ, जहाँ संत कबीर जैसे प्रसिद्ध कवि, भारतीय संगीतकार और नर्तक जैसे कि किशन महाराज, गोपी कृष्ण, समता प्रसाद और राजन-साजन मिश्रा बंधु हुए हैं। गली में खेल रहे बच्चे दौड़ते हुए मेरे पास आए और कई लोग गलियों और अपनी-अपनी बालकनी में इकट्ठे हो गये। वह पल सपने जैसा था और मेरी खूबसूरत यादें ताजा हो गईं। बीती जिंदगी की तस्वीरें नजरों के सामने से गुजरने लगीं, जब मैंने अपने घर के करीब पहुँचकर उसका दरवाजा खोला। बुनियादी ढांचे के तेज विकास के बावजूद उस जगह का माहौल नहीं बदला था। हमारे पुराने पड़ोसी मुझे देखकर बहुत खुश हुये और मेरा अभिवादन करने के लिये अपने-अपने घरों से बाहर आ गये। हमने मिलकर कई सेल्फीज खीचीं। फिर मैं छत पर गई, जो कि मेरी पसंदीदा जगहों में से एक है। मैं वहाँ घंटों बिताया करती थी। मेरे किरायेदारों के पापड़ धूप में सूख रहे थे और मुझे मेरी माँ की याद आ गई, जो पापड़ सुखाया करती थीं। उन्हें पंछियों से बचाना मेरे भाई-बहनों और मेरी जिम्मेदारी होती थी (हंसती हैं)।’’

शहर में घूमने और अपने बचपन के दोस्तों से मिलने के बारे में विदिशा ने बताया, ‘‘बचपन के दोस्त हमेशा सबसे खास और सारे दोस्तों में सबसे अच्छे होते हैं। मैं एक दशक बाद अपने दोस्तों से मिली। जहाँ से हमारा साथ छूटा था, हमने वहीं से शुरूआत की। हमें बिलकुल नहीं लगा कि हम इतने लंबे वक्त के बाद मिल रहे थे। हम लगातार अपने पुराने अच्छे दिनों और शरारतों की बातें करते रहे। फिर हम अपने सदाबहार पसंदीदा ‘‘काशी चाट भंडार’’ गये और अपनी चहेती टमाटर चाट और गोलगप्पों पर टूट पड़े। हम गंगा घाट पर भी गये और शाम को बोट राइड की। काशी में जाकर यह तो करना ही चाहिये और इसमें हमेशा मजा आता है। जब हम जाने के लिये तैयार हुए, तब बहुत भावुक, लेकिन खुश थे और यह संतोष था कि हमें खूबसूरत यादें मिलीं और हमने जल्दी ही बनारस लौटने का वादा किया।’’

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