वो दिन पुराने हो गये, जब बच्चे घर के बाहर धूप में दौड़ते हुए खेलकर वक्त बिताया करते थे। अब बच्चे अपने आस-पास के मैदानों में ज्यादातर क्रिकेट खेलते हैं, झूला झूलते हैं या राइड करते हैं। इसके अलावा गैजेट्स, स्मार्टफोन्स और टैबलेट्स ने आउटडोर खेलों की जगह ले ली है और बच्चे लगातार आॅनलाइन गेमिंग में डूबे रहते हैं। बाहर खेलने की साधारण-सी खुशी पुरानी यादें ताजा कर देती है। दौड़ते हुए बच्चे, गिल्ली-डंडा, कंचा, पिठू, आदि खेलने वाले बच्चे कहीं खो गये हैं। बाल दिवस पर एण्डटीवी के कलाकारों ने अपने बीते दिनों को याद किया, बचपन के अपने उन खेलों पर बात की, जो लंबे वक्त से गायब हैं, और साथ ही बच्चों को बाहर निकलकर खेलने के लिये प्रोत्साहित किया! इन कलाकारों में शामिल हैं नेहा जोशी (‘दूसरी माँ’ की यशोदा), योगेश त्रिपाठी (‘हप्पू की उलटन पलटन’ के दरोगा हप्पू सिंह) और शुभांगी अत्रे (‘भाबीजी घर पर हैं’ की अंगूरी भाबी)। एण्डटीवी के शो ‘दूसरी माँ‘ में यशोदा की भूमिका निभा रहीं नेहा जोशी ने बताया, ‘‘मेरा बचपन मस्ती से भरा था। मैं नासिक में रहती थी और कई कजिन्स मेरे आस-पास ही रहते थे। जब भी हम साथ होते थे, कई खेल खेलते थे, शुरूआत लुका-छुपी से होती थी। वह हमारा सदाबहार पसंदीदा खेल था। उसके अलावा, हम खो-खो और लगोरी का भी मजा लिया करते थे। मुझे याद है कि परिवार के बड़े लोग हमसे चिढ़ जाते थे, क्योंकि हम अपने खेलों में इतने मगन रहते थे कि उनकी आवाज सुनने के बाद भी हम खेलते रहते थे और वे बार-बार हमें घर आने के लिये या खाने के लिये पुकारते रहते थे। उन खेलों की मासूमियत कभी नहीं लौटेगी। शानदार ग्राफिक्स और मल्टी-प्लेयर्स वाले वर्चुअल वल्र्ड में वह मजा नहीं है, जो बाहर जी भरकर खेलने में है, चाहे वहाँ धूल, गंदगी और तेज धूप क्यों न हो। तो इस बाल दिवस पर मैं हमारे सेट पर आयुध भानुशाली (कृष्णा) और शो के दूसरे बच्चों के साथ यह खेल खेलना चाहती हूँ और उन्हें हमारे बचपन के दिनों की एक झलक दिखाना चाहती हूँ। मैं उन खूबसूरत यादों में खोना चाहती हूँ।’’
एण्डटीवी के शो ‘हप्पू की उलटन पलटन‘ में दरोगा हप्पू सिंह बने योगेश त्रिपाठी ने कहा, ‘‘बचपन में मेरे पास कभी ऐसे फैंसी गैजेट्स या महंगे खिलौने नहीं रहे, फिर भी मेरे भाई-बहन और मैं व्यस्त रहने के कई तरीके खोज लेते थे और बोर नहीं होते थे। मुझे अब भी याद है कि मैं गर्मियों की छुट्टियों के दौरान मेरे होमटाउन में सारे दोस्तों के साथ मिलकर गिल्ली-डंडा खेलता था। उन दोस्तों के साथ मेरा संपर्क अब भी है और वे अपने जीवन में बेहतरीन काम कर रहे हैं। यह खेल क्रिकेट और बेसबाॅल का एक तरह का फ्यूजन है और मुझे लगता है कि यह कहीं खो गया है; गाँवों में बच्चे अब भी यह खेलते हैं, लेकिन शहरी बच्चों को इस बेहतरीन खेल की जानकारी नहीं है। मुझे याद है कि मेरे दोस्तों और मेरे पास एक गिल्ली और एक लंबा डंडा होता था। गिल्ली को मारने के बाद हमें दूसरी टीम के गिल्ली को पकड़ने से पहले एक खास पाॅइंट तक दौड़कर पहुँचना होता था। उत्तर प्रदेश में गिल्ली-डंडा को लिप्पा भी कहा जाता है। बचपन की यादें हमारी जिन्दगी का सबसे बड़ा खजाना हैं। आइये, हम अपने बचपन को दोबारा जियें और आउटडोर खेलों की संस्कृति को वापस लाएं। इस बाल दिवस पर मैं हर पैरेंट से अपने बच्चों को आउटडोर खेलों के लिये प्रोत्साहित करने का आग्रह करता हूँ, खासकर हमारे भारतीय खेलों के लिये। सभी को बाल दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं।’’ एण्डटीवी के शो ‘भाबीजी घर पर हैं‘ में अंगूरी भाबी बनीं शुभांगी अत्रे ने कहा, ‘‘कंचा हमारे समय के सबसे लोकप्रिय खेलों में से एक था। यह देखकर मैं उदास हो जाती हूँ कि आज के बच्चों को पता ही नहीं है कि यह आउटडोर गेम खेलने में हमें कितना मजा आता था। जब मैं बच्ची थी, तब मार्बल्स देखकर रोमांचित हो जाती थी; मैं हमेशा उन्हें ग्रहों जैसा समझती थी और मेरे पास अब भी घर पर किस्म-किस्म के मार्बल कलेक्शंस हैं। मैं स्कूल में खेलने के लिये तरह-तरह के मार्बल्स लाती थी और अपने क्लासमेट्स के साथ मिलकर लंच ब्रेक में उन मार्बल्स के साथ खेलती थी। उस खेल को ‘‘कंचा’’ या ‘‘गोली’’ कहते थे। उस खेल में हमें चुने गये टार्गेट ‘‘कंचा’’ को अपनी मार्बल बाॅल से मारना होता था और जीतने वाले को बाकी सारे खिलाड़ियों के कंचे मिल जाते थे। मुझे इस खेल का चैम्पियन कहा जाता था और इसी खेल के कारण मेरा मार्बल कलेक्शन बढ़ता गया (हंसती हैं)। मैं अपने पैरेंट्स को मुझे एक खूबसूरत बचपन देने के लिये धन्यवाद देती हूँ और अपनी बेटी को भी वैसा ही बचपन देने की कोशिश कर रही हूँ। आइये, इस बाल दिवस को मजेदार बनाएं और अपने बच्चों को यह खो चुके गलियों के खेल सिखाएं, जिन्हें खेलकर हम बड़े हुए हैं। बचपन की मस्ती का यह सबसे बढ़िया तरीका है और इसके द्वारा हम भविष्य की पीढ़ियों को यह खेल सिखा भी सकते हैं। सभी को बाल दिवस की शुभकामनाएं।’’