सोनी बीबीसी अर्थ समय की मांग पर डाक्यूमेंट्री-सीरीज ‘क्लाइमेट चेंज – द फैक्ट्स’ का प्रसारण

शहज़ाद अहमद 

जीवन पूरा समाप्त नहीं होता है….. क्या उम्मीद अभी भी ज़िंदा है ?

वर्ष 2040 के आते-आते वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री तक वृद्धि होने का अनुमान है – जिसके बाद हमारी पृथ्वी को नुकसान होगा, वह स्थायी नुकसान होगा. बस हमारी दुनिया जलवायु संबंधित विनाश से इतनी ही दूर है. खतरे की घंटी की आवाज तेज होती जा रही है और ऐसे संकटपूर्ण समय में, सोनी बीबीसी अर्थ समय की मांग के अनुसार एक फिल्म, ‘क्लाइमेट चेंज – द फैक्ट’ लेकर आ रहा है. डेविड एटनबरो के आख्यान के साथ 7 मार्च को रात 9 बजे से सोनी बीबीसी अर्थ पर इस डाक्यूमेंट्री के प्रथम प्रसारण में मानव जाति के समक्ष सबसे बड़े खतरे के पीछे हमारे कार्यों के प्रभाव से लेकर समाधान तक पूरी सचाई से पर्दा उठाने जा रहा है.इतिहास में दर्ज सबसे गर्म वर्षों के बाद, जलवायु-विज्ञानी और मौसम-विज्ञानी मानव जनसंख्या और प्राकृतिक जगत, दोनों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझा रहे हैं. इस शो में वैज्ञानिकों ने हाल के वर्षों में अप्रत्याशित आंधी और विनाशकारी दावानल सहित चरम मौसम की अवस्थाओं के पीछे के विज्ञान को आनुसंधानिक ढंग से उजागर किया है. साथ ही वे यह भी बता रहे हैं कि जिस तेज रफ़्तार से दुनिया की बर्फ पिघल रही है, उससे कैसे समुद्र का जलस्तर ऊपर उठ रहा है और किस प्रकार वनोन्मूलन से वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ने के कारण वैश्विक तापमान की समस्या गहरी होती जा रही है.विगत कुछ वर्षों में वैश्विक तापमान और जलवायु परिवर्तन को लेकर चर्चाओं में काफी वृद्धि हुयी है, जिसमें
वैज्ञानिकों, पर्यावरण संरक्षणवादियों, विश्व लीडरों और मीडिया द्वारा विविध एवं भिन्न मत एवं तथ्य पेश किये हैं. किन्तु एक आम व्यक्ति के लिए इनमें से अधिकाँश बातें रहस्य बनी हुयी हैं. घड़ी टिक-टिक कर रही है, लेकिन सारी उम्मीद नहीं मरी है. यह डाक्यूमेंट्री नाराचारों, टेक्नोलॉजी और विश्व की सरकारों और उद्योगों द्वारा तामपान और बढ़ने को रोकने के लिए किये जा रहे कार्यों की खोज करते हुए संभावित समाधानों पर ध्यान आ कर्षित करता है. साथ ही मौलिक स्तरों पर बदलावे लाने वाले व्यक्तियों को भी दिखाया गया है.

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