@shahzadahmed
हम डरावनी कहानियां और रहस्यमयी चीजों के किस्से सुनते हुए बड़े हुए हैं। यह कहना पूरी तरह गलत नहीं होगा कि हॉरर और मिस्ट्री ऐसी चीजें हैं जो लंबे समय से ही हमारा मनोरंजन करती आ रही हैं। कई बार यह टाइमिंग की बात होती है कि रोजमर्रा के जीवन और किस्सों में एक रहस्यमयी स्थिति मजेदार घटना में तब्दील हो जाये। वैसे हो सकता है कि हम सबको अपने जीवन में कभी ना कभी इस तरह की स्थिति से दो-चार होना पड़ा हो। आइये ऐसी कुछ घटनाओं के बारे में जानते हैं सोनी सब के शो ‘जीजाजी छत पर कोई है’ के कलाकारों से। इस शो में एक नये रहस्य पर से परदा उठने वाला है।
अपने जीवन से जुड़ी ऐसी ही कुछ रहस्यमयी घटनाओं को याद करते ‘जीजाजी छत पर कोई है’ के कलाकारों ने कुछ बेहद ही डरावने अनुभव साझा किये।
हिबा नवाब अपने 3 बजे वाले डर के बारे में बताते हुए कहती हैं, ‘’जब भी कुछ भूतिया या रहस्यमयी चीजों की बात होती है मैं उससे दूर रहना ही पसंद करती हूं। भूतों और डरावनी चीजों के बारे में बात करते हुए मुझे बहुत ही डर लगता है और ऐसा लगता है मैं डरकर बेहोश ही हो जाऊंगी। यही वजह है कि मैं ‘जीजाजी छत पर कोई है’ में दोहरी भूमिका निभा रही हूं, जिनमें से एक किरदार साया का है। मैंने अपने डर पर काबू पाने के लिये ही इस भूमिका को चुना। मुझे एक घटना याद है जब मैं घर पर अकेली थी और मैंने घड़ी की तरफ देखा नहीं और लगातार 3 बजे तक एक शो देखती रही। मुझे तो बत्ती बंद करने में भी डर लगता है और मुझे ऐसा लगता रहता है कि दरवाजे पर कोई है। मुझे पता था कि मेरा डर मेरी मुश्किलें बढ़ाने का काम कर रहा है लेकिन मेरी कभी हिम्मत नहीं हुई कि मैं कमरे की बत्ती बंद करके पूरी रात सो पाऊं।‘’
अपने टीनएज के दिनों को याद करते हुए, अनूप उपाध्याय यानी जल्दीराम शर्मा कहते हैं, ‘’यह उन दिनों की बात है जब मैं 12वीं में पढ़ता था। मैं और मेरे तीन दोस्तों ने मिलकर अपने एक दोस्त के घर पर पूरी रात जगकर पढ़ाई करने का प्लान बनाया। वह एक बड़ी-सी हवेली में रहता था, जिसमें कई सारे बरामदे और बीचोंबीच एक मंदिर था। वह ठंड की रात थी और हम सभी बरामदे से लगे कमरे में पढ़ने के लिये गये, हमें इस बारे में पता नहीं था कि उसमें कोई लॉक नहीं है। चूंकि हमने से कोई भी बिस्तर और कम्बल से निकलना नहीं चाहता था। हम सिर्फ पढ़ाई के बारे में सोच रहे थे। हमारे दोस्त के पिताजी ने पहले ही हमें यह चेतावनी दे दी थी कि आधी रात को अगर कोई आवाज सुनायी दे तो उसे अनसुना कर देना। बस पढ़ना या फिर सो जाना। हमें लालटेन में पढ़ाई करते हुए अभी सिर्फ 15-20 मिनट ही हुए थे, मुझे हवेली की सीढ़ियों से घुंघरूओं की आवाजें सुनायी देने लगीं। हमें वह आवाज अपने कमरे के करीब आती हुई महसूस हो रही थी और उस समय हम काफी डर गये थे। कुछ समय बाद हमने महसूस किया कि हमारे दरवाजे के बाहर से आवाजें आनी बंद हो गयी हैं। कुछ देर के बाद, हमने वह आवाज सीढ़ियों पर वापस जाती हुई सुनी और फिर गायब हो गयी। सचमुच नहीं पता कि वह कोई भूत था या फिर कोई भक्त जोकि मंदिर में पूजा करने आया था, लेकिन मेरे जीवन की उस घटना ने मुझे हिलाकर रख दिया था। मैं आज भी उसे एक मजेदार रात के रूप में याद करता हूं लेकिन घुंघरूओं का वह रहस्य आज भी अनसुलझा है।‘’
शुभाशीष झा अपने कॉलेज के दिनों को याद करते हुए कहते हैं, ‘’मैं एक कम्प्यूटर इंजीनियर हूं। कॉलेज के दिनों में हमारे हॉस्टल से जुड़ी एक अफवाह थी कि हॉल के आस-पास कोई रहस्यमयी चीज घूमती है। वह मेरी जिंदगी की एक घटना थी जहां मुझे अपने कमरे से निकलकर वॉटर कूलर तक खुद के लिये पानी लाने में भी डर लगा था। उन अफवाहों की वजह से मेरे दो हफ्ते डरावने सपने के बीच गुजरे। मेरे घर के लोगों ने जो टोटके बताये थे उन्हें भी मैंने आजमा कर देखा। जैसे अपने तकिये के नीचे हनुमान चालीसा रखकर सोना और सच पूछो तो मैंने सारी चीजें करके देखीं, लेकिन उन सपनों ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा। आखिरकार कुछ समय बाद अपने आप ही वो सपने आने बंद हो गये, लेकिन जैसे ही छुटि्टयां शुरू हुईं, ज्यादातर स्टूडेंट्स अपने घर चले गये और सिर्फ 5-6 लोग हॉस्टल में रह गये। उस रात बारिश हो रही थी और मेरे दोस्त ने मुझे कैम्पस के बाहर उसके साथ रहने को कहा लेकिन मैंने उसकी बात को कभी गंभीरता से नहीं लिया। मैं हॉस्टल में रहना चाहता था क्योंकि वहां मुझे अपनापन सा महसूस होता था। सारे लोगों के चले जाने के बाद, पहली रात मैं अपने कमरे से थोड़ी दूरी पर एक कॉमन वॉटर कूलर से पानी लेने गया। मेरे आस-पास का माहौल काफी डरावना था, बाहर तेज बारिश हो रही थी और ईको सुनाई पड़ रहा था। मुझे वे सारी अफवाहें याद आने लगीं और मुझे वहां जाने में डर लगने लगा। सच कहूं तो मैं चाहता था कि कोई और मेरे लिये पानी ले आये, लेकिन मैं अकेला था और वह अनुभव डरा देने वाला था। मैं काफी डरा हुआ था। उस घटना के अगले ही दिन ही मैं अपने दोस्त के फ्लैट पर चला गया और कुछ दिनों के लिये उसके साथ ही रुका।‘’
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