इंटरनेशनल मदर लैंग्वेज डे पर एण्डटीवी के कलाकारों ने अपनी मातृभाषा उन पसंदीदा शब्दों के बारे में बताया जिनका रोजाना की बातचीत में इस्तेमाल करने से उन्हें खूब मजा आता है और इन शब्दों को सुनकर दूसरे लोगों की क्या प्रतिक्रिया होती है। यह कलाकार हैं नेहा जोशी (‘दूसरी माँ’ की यशोदा), कामना पाठक (‘हप्पू की उलटन पलटन’ की राजेश) और सानंद वर्मा (‘भाबीजी घर पर हैं’ के अनोखेलाल सक्सेना)। एण्डटीवी के ‘दूसरी माँ‘ में यशोदा की भूमिका निभा रहीं नेहा जोशी ने कहा, ‘‘मैं एक मराठी मुलगी हूँ और मुझे महाराष्ट्रियन होने पर गर्व है। मुझे अपनी मातृभाषा में अपनी भावनाओं को व्यक्त करना पसंद है। बचपन से ही, जब भी मुझे कुछ बुरा लगता या मैं किसी अजीब स्थिति में होती, तो मेरा पहला रियेक्शन होता था ‘आई गा’! किसी का हाल-चाल जानने के लिये ‘कसा काय’ कहने से एक अनोखे अपनेपन का एहसास होता है। इन शब्दों को कहने की खूबसूरती इनके टोन में है, क्योंकि दूसरी भाषा में वही भाव नहीं आता है। मराठी के बारे में मुझे अच्छी बात यह लगती है कि हम कभी ‘जाते मी’ नहीं कहते, जिसका मतलब होता है कि ‘मैं जा रहा हूँ, बल्कि हम कहते हैं ‘येते मी, मतलब ‘मैं वापस आऊंगा’। इससे एक प्यार भरे तरीके से यह आश्वासन मिलता है कि मैं अभी जा रहा हूँ, लेकिन जल्दी ही लौटूंगा।’’
एण्डटीवी के ‘हप्पू की उलटन पलटन‘ में राजेश की भूमिका निभा रहीं कामना पाठक ने कहा, ‘‘मुझे इंदौर की कई बातें पसंद हैं, जैसे कि खान-पान और फैशन, और वहां के लोग। लेकिन मेरी मातृभाषा मुझे सबसे अच्छी लगती है। ‘ओ भइयो’ (अरे भाई) ऐसा शब्द है, जिसे मैं अक्सर अपने दोस्तों पर इस्तेमाल करती हूँ, जब मेरे साथ मजाक होता है या मुझे तंग किया जाता है। इसके अलावा इंदौरी और भोपाली भाषा मुझे प्रभावित करती है और मुझे रोजाना उनका इस्तेमाल करना पसंद है। ‘हप्पू की उलटन पलटन’ के सेट पर भी ज्यादातर लोगों ने मुझे अक्सर ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करते पाया है, जैसे कि ‘क्या बापर रहे हो’ (क्या वापर रहे हो) और बहुत मजा आता है, जब लोग मेरी इंदौरी बोली से भ्रम में पड़ जाते हैं। कुछ इंदौरी शब्दों, जैसे कि चका-चक (कूल), डिजाइन (किसी को बेवकूफ बनाना) और नी यार (सचमुच?) का मैं इतना इस्तेमाल करती हूँ कि सेट पर हर कोई उनका इस्तेमाल करने लगा है। मुझे अपनी भाषा पर बहुत गर्व है और आपको भी होना चाहिये! आप सभी को इंटरनेशनल मदर लैंग्वेज डे की शुभकामनाएं।’’ एण्डटीवी के ‘भाबीजी घर पर हैं‘ में अनोखेलाल सक्सेना की भूमिका निभा रहे सानंद वर्मा ने कहा, ‘‘मैं चाहे बिहार से कितना भी दूर रहूं, मेरी मातृभाषा में ऐसा कुछ तो है कि उसका आकर्षण कभी नहीं खोता है। लोग मुझे आमतौर पर ‘बकलोल’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते देख सकते हैं, जिसका अंग्रेजी में मतलब ‘स्टूपिड’ होता है। मैं अपने पिता और उनके दोस्तों से यह शब्द सुना करता था, जब मुझसे कोई बेवकूफी होती थी या मैं पढ़ाई नहीं करता था। मैंने अपनी कई फिल्मों में इस मजेदार शब्द को अपनाया है और मेरे साथी कलाकारों ने भी इसका इस्तेमाल किया है। मुझे याद है कि गुस्सा होने पर जब भी मैंने कहा कि ‘भाग बकलोल’, तब हर कोई हंसने लगा और मुझे भी हंसी आ गई! मेरा मानना है कि हर किसी को अपनी मातृभाषा में अपनी भावनाओं को व्यक्त करना सहज लगता है और इसलिये इंटरनेशनल मदर लैंग्वेज डे मनाना महत्वपूर्ण है।’’