समीर धर्माधिकारी को याद आए मां के हाथ के गुलाब जामुन

दुनिया का कोई भी ऐशो-आराम मां के हाथ के बने खाने की जगह नहीं ले सकता। खासकर हमारे विशेष मौकों पर, मांएं हमारे पसंदीदा खाने में अपनी ममता और प्यार का तड़का लगाकर इसे और खास बनाने की कोशिश करती हैं। दिग्गज एक्टर समीर धर्माधिकारी भी ऐसी ही एक बात याद कर रहे हैं। समीर फिलहाल एण्डटीवी के ‘घर एक मंदिर-कृपा अग्रसेन महाराज की’ में महाराज अग्रसेन के इंसानी अवतार, ‘महाराज‘ की भूमिका निभा रहे हैं। जैसे-जैसे समीर का बर्थडे करीब आ रहा है उन्हें इस खास दिन की याद सताने लगी है, जिसे वे अपनी मां के साथ मनाया करते थे। अब उनकी मां इस दुनिया में नहीं हैं। पर अपनी मां के हाथों के बने स्वादिष्ट पकवान भी उन्हें खूब याद आ रहे हैं।

अपने बर्थडे के बारे में समीर धर्माधिकारी कहते हैं, ‘‘मेरा जन्म और परवरिश एक पारंपरिक महाराष्ट्रियन परिवार में हुआ है। जहां तक मुझे याद है, मेरा जन्मदिन आई (मां) की एक छोटी-सी पूजा से शुरू हुआ करता था। उसके बाद वो मेरे माथे पर तिलक लगाती थीं। मैं उनका आशीर्वाद लेकर दिन की शुरूआत करता था। मेरे जन्मदिन की सबसे अच्छी चीज होती थी, उनके हाथों का बना हुआ स्वादिष्ट गुलाब जामुन। आई कम से कम 100 गुलाब जामुन जरूर बनाती थीं और मैं चहकते हुए सारे गुलाब जामुन दो दिनों में ही चट कर जाता था। केक काटना, मोमबत्ती बुझाना या एक बड़ी सी पार्टी की जगह मुझे जन्मदिन मनाने का यह पारंपरिक तरीका पसंद है। भले ही आज वो हमारे साथ नहीं हैं, लेकिन उनकी यादें और गुलाब जामुन का स्वाद आज भी जेहन में ताजा हैं।‘‘ इस साल अपने बर्थडे पर वो क्या करने वाले हैं, इस बारे में समीर कहते हैं, ‘‘इस साल मेरा बर्थडे काम करते हुए बीतेगा। वैसे तो मुझे लोगों से वीडियो काॅल पर जुड़ना पसंद नहीं है, लेकिन मैं अपनी बहन, पत्नी और बच्चों के साथ इस साल वर्चुअली कनेक्ट होने के लिये वक्त जरूर निकालूंगा। इस दिन को और खास बनाने के लिये भारतीय मिठाई बनाने वाली वह परंपरा अभी भी जारी है, मेरी पत्नी लौकी और गाजर का हलुवा बनाने वाली हैं। इसके बाद शाम को मैं अपने बच्चों के लिये कुछ चाॅकलेट पेस्ट्रीज आॅर्डर करूंगा।‘‘

समीर धर्माधिकारी ‘महाराज‘ नाम के एक आम आदमी के रूप में एंट्री करने वाले हैं। वह अग्रसेन महाराज के सिद्धांतों पर गेंदा के विश्वास को फिर से बहाल करने आये हैं। उनकी एंट्री किस तरह गेंदा (श्रेणू पारीख) की जिंदगी बदलने वाली है; इसका पता उसकी अलग-अलग समस्याओं के समाधान और अग्रसेन महाराज के सिद्धातों पर फिर से कायम होते उसके भरोसे के जरिये दिखाया जायेगा। यही इस कहानी का मूल है।

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