रोहिताश्व गौड़ 20 साल बाद अपने एक्टिंग स्कूल में पहुँचकर भावुक हुये!

हम स्कूल में केवल सीखते नहीं हैं, बल्कि वह एक खास जगह होती है, जहाँ ज्ञान, अनुभव और यादें मिलती हैं, जो हमारी जिन्दगी को आकार देती हैं। ग्रेजुएट होकर आगे बढ़ जाने के बाद भी उन महत्वपूर्ण वर्षों में मिले सबक और संजोयी गई यादें हमारे साथ रहती हैं। अपने पुराने स्कूल में लौटना, अपने परिचित कमरों पर नजर डालना और अतीत को दोबारा जीना दिल को सुकून देने वाला अनुभव हो सकता है। हाल ही में, एक्टर रोहिताश्व गौड़, जोकि एण्डटीवी के शो ‘भाबीजी घर पर हैं‘ में मनमोहन तिवारी की भूमिका के लिये बेहद लोकप्रिय हैं, को एक आनंददायक यात्रा करने का मौका मिला था। दो दशकों के बाद वे दिल्ली में अपने एक्टिंग स्कूल पहुँचे जहां वे, बीती यादों में खो गये और अपनी जड़ों से दोबारा जुड़े।

इसके बारे में बात करते हुए, ‘भाबीजी घर पर हैं‘ में मनमोहन तिवारी की भूमिका निभा रहे रोहिताश्व गौड़ ने कहा, ‘‘हिमाचल में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं एक्टिंग में कॅरियर बनाने के लिये दिल्ली आ गया था। सौभाग्य से मुझे एनएसडी (नेशनल स्कूल आॅफ ड्रामा) में एडमिशन मिल गया। मैं पहली  बार अपने परिवार से दूर रह रहा था और वह कठिन दौर था। नये शहर के मुताबिक ढलने और अभिनय में कौशल को निखारने के लिये मुझे कई साल लगे। जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ, तब बहुत अच्छा लगता करता हूँ। एक्टिंग स्कूल और उसके बाद के परफाॅर्मेंसेस में मैंने जो वक्त बिताया, वह मेरे कॅरियर को आकार देने में महत्वपूर्ण रहा। मैं हमेशा से वापस जाकर उन यादों को जीना चाहता था, खासकर मुंबई जाने के बाद, लेकिन दिल्ली आने के बावजूद ऐसा हो नहीं पाया। आखिरकार हाल ही में मुझे वह मौका मिल गया। मैं दिल्ली में मनमोहन तिवारी बनकर लव कुश रामलीला देखने गया और अगले दिन इस प्रतिष्ठित संस्थान का भूतपूर्व छात्र होने के नाते, मैं दो दशकों की अनुपस्थिति के बाद अपने स्कूल लौटा। जैसे ही मैं प्रवेशद्वार के भीतर पहुँचा, मेरी आँखों में आंसू आ गये। पुरानी यादों ने मुझे झकझोर दिया। मैंने अपने शिक्षकों और दूसरे कर्मचारियों के साथ काफी वक्त बिताया। उनकी खुशी और मेरे शो ‘भाबीजी घर पर हैं’ में मेरे काम की तारीफ दिल को छूने वाली थी। मैं कैंटीन की चाय पीने से खुद को रोक न सका, जोकि उस वक्त हमारी जिन्दगी का एक प्यारा-सा हिस्सा थी, जब हम आर्थिक रूप से संघर्ष कर रहे थे। मैंने ‘‘लैला मजनूं’’ नाम का एक नाटक भी देखा, जिसे श्री राम गोपाल बजाज ने निर्देशित किया था और जो उसी मंच पर हो रहा था, जहाँ मैं पहले परफाॅर्म करता था। मेरी भावनाएं उमड़ पड़ीं और मैं यादों में खो गया। बुनियादी ढांचा बदल चुका है, लेकिन आकांक्षी एक्टर्स के लिये वह जगह जो प्यार और अपनापन रखती है, वह वैसा ही था। पुराने दोस्तों से मिलना एक सुखद आश्चर्य था और मुझे याद आया कि इंडस्ट्री में सफल कॅरियर बना चुके कई लोग उस जगह से गहरा लगाव रखते हैं। इस तरह से सचमुच मेरा दिल भर आया और मैं दोबारा वहाँ जाने की उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहा हूँ।’’

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