फ़िल्म समीक्षा ‘बेलबॉटम’ शानदार एक्शन के साथ

अक्षय कुमार के करियर के लिए फिल्म ‘बेलबॉटम’ ऐसे मौके पर रिलीज हो रही है, जब उन्हें एक सोलो सुपरहिट फिल्म की बहुत जरूरत है और निर्देशक रंजीत ए तिवारी ने ये काम कर दिखाया है। फिल्म शुरू में थोड़ा सुस्त रफ्तार से चलती है। अलग अलग कालखंडों की कहानियां बार बार आगे पीछे होने से दर्शकों को कथानक पर पकड़ बनाए रखने में भी दिक्कत होती है। लेकिन, एक बार फिल्म का कहानी असल मुद्दे पर आती है तो फिर आखिर तक रफ्तार बनाए रखती है। हां, थोड़ा झटका फिल्म क्लाइमेक्स में खाती है लेकिन कुल मिलाकर फिल्म बोर नहीं करती।

फिल्म ‘बेलबॉटम’ की कहानी उन दिनों की है जब देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं। इंदिरा गांधी ने ही इंटेलिजेंस ब्यूरो यानी आईबी को दो हिस्सों में बांटकर आईबी को घरेलू मामलों की जिम्मेदारी दी और इसके दूसरे हिस्से को रॉ यान रिसर्च एंड एनालिसिस विंग में तब्दील कर दिया। फिल्म ‘बेलबॉटम’ में एक शख्स लगातार इंदिरा गांधी के साथ दिखता है जिसे रॉ एजेंट बेलबॉटम का बॉस एक बार बीच में रॉ के संस्थापक के रूप में परिचित कराता है। रॉ के फाउंडर रहे आर एन काव 1984 में इंदिरा गांधी के सुरक्षा सलाहकार थे। फिल्म दिखाती है कैसे इंदिरा गांधी ने एक जोशीले रॉ एजेंट पर दांव लगाया? कैसे तमाम अफसरों और मंत्रियों के विरोध के बावजूद इस एजेंट की बात सुनी? और, कैसे देश ने पहली बार आतंकवादियों से वार्ता करने की पाकिस्तान की मांग ठुकराई। इसी कहानी के बीच चलती है एक विमान अपहरण की कहानी, जिसे अपहर्ताओं से मुक्त कराने की जिम्मेदारी रॉ एजेंट बेलबॉटम उठाता है।

फिल्म ‘बेलबॉटम’ की कहानी सच्ची घटनाओं से प्रेरित है। इसमें निर्देशक और उनके लेखक ने अपनी तरफ से भी तमाम कल्पनाएं जोड़ी हैं। इसी के चलते मामला कहीं कहीं पर पूरा फिल्मी भी हो जाता है। यूपीएससी की परीक्षा देते देते उम्र गुजार चुके बेटे अंशुल और उसकी मां वाला ट्रैक फिल्म में काफी लंबा है और फिल्म की रफ्तार को भी धीमी करता है। और, देश के लिए लड़ने निकले रॉ के एजेंट के सारे किए धरे को सिर्फ मां की मौत का बदला जैसा दिखाने से भी फिल्म थोड़ी कमजोर होती है। लेकिन, अक्षय कुमार ने एक रॉ एजेंट के तौर पर अच्छा काम कर दिखाया है और अपनी पिछली फिल्म ‘लक्ष्मी’ में की गई ओवरएक्टिंग का दाग भी धो डाला है। वाणी कपूर के साथ उनकी जोड़ी जमती है। एक्शन में तो वह माहिर हैं ही, फिल्म के कुछ दृश्यों में वह दर्शकों को अपने साथ भावनाओं में भी बहा ले जाने में सफल रहते हैं, खासतौर से मां को एयरपोर्ट पर विदाई देते समय का दृश्य।

फिल्म में दिखने वाले सीन देखते समय अगर आप ये सोचें कि ये सारा काम कोरोना महामारी के उस दौर में हुआ है जब लोग एक दूसरे के आमने सामने आने से भी कतराते थे, तो समझ आता है कि फिल्म कितनी मेहनत से बनी है। फिल्म को बड़े परदे पर रिलीज करके इसके निर्माताओं ने इसके साथ सही न्याय किया है क्योंकि इस फिल्म का असली मजा बड़े परदे पर ही आने वाला है।

कलाकार – अक्षय कुमार, वाणी कपूर, लारा दत्ता, हुमा कुरैशी, आदिल हुसैन, अनिरुद्ध दवे आदि

निर्देशक – रंजीत एम तिवारी

निर्माता – वाशू भगनानी, निखिल आडवाणी

रेटिंग – ⭐⭐⭐ 5/3

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