शहज़ाद अहमद / नई दिल्ली जब हम बड़े होते हैं तब से ही कॉम्पीटिशन हमारे दिलोदिमाग में समाया होता है। परिवार में भाई-बहनों के बीच, स्कूल में ग्रेड के लिये या जब हम बड़े होते हैं तो दफ्तर में एक बेहतरीन प्रमोशन पाने के लिये। लेकिन क्या हो जब प्रोफेशनल कॉम्पीटिशन हेल्दी ना रह जाये और यह पर्सनल रूप अख्तियार कर ले ? क्या होगा जब दफ्तर की राजनीति दोस्ती को तबाह करना शुरू कर दे? जैसे यदि आप सोचते हैं कि आप विज्ञापन की दुनिया के बारे में…
Read More